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चौदहवां समुल्लास खण्ड-2

१०- आदम को सारे नाम सिखाये। फिर फरिश्तों के सामने करके कहा जो तुम सच्चे हो मुझे उन के नाम बताओ।। कहा हे आदम! उन को उन के नाम बता दे। तब उस ने बता दिये तो खुदा ने फरिश्तों से कहा कि क्या मैंने तुम से नहीं कहा था कि निश्चय मैं पृथिवी और आसमान की छिपी वस्तुओं को और प्रकट छिपे कर्मों को जानता हूँ ।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ३०। ३१।।

(समीक्षक) भला ऐसे फरिश्तों को धोखा देकर अपनी बड़ाई करना खुदा का काम हो सकता है ? यह तो एक दम्भ की बात है। इस को कोई विद्वान् नहीं मान सकता और न ऐसा अभिमान करता। क्या ऐसी बातों से ही खुदा अपनी सिद्धाई जमाना चाहता है ? हाँ! जंगली लोगों में कोई कैसा ही पाखण्ड चला लेवे चल सकता है; सभ्य जनों में नहीं ।।१०।।

११- जब हमने फरिश्तों से कहा कि बाबा आदम को दण्डवत् करो, देखा सभों ने दण्डवत् किया परन्तु शैतान ने न माना और अभिमान किया क्योंकि वो भी एक काफिर था।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ३४।।

(समीक्षक) इस से खुदा सर्वज्ञ नहीं अर्थात् भूत, भविष्यत् और वर्त्तमान की पूरी बातें नहीं जानता। जो जानता हो तो शैतान को पैदा ही क्यों किया ? और खुदा में कुछ तेज भी नहीं है क्योंकि शैतान ने खुदा का हुक्म ही न माना और खुदा उस का कुछ भी न कर सका। और देखिये! एक शैतान काफिर ने खुदा का भी छक्का छुड़ा दिया तो मुसलमानों के कथनानुसार भिन्न जहाँ क्रोड़ों काफिर हैं वहाँ मुसलमानों के खुदा और मुसलमानों की क्या चल सकती है? कभी-कभी खुदा भी किसी का रोग बढ़ा देता, किसी को गुमराह कर देता है। खुदा ने ये बातें शैतान से सीखी होंगी और शैतान ने खुदा से। क्योंकि विना खुदा के शैतान का उस्ताद और कोई नहीं हो सकता।।११।।

१२- हमने कहा कि ओ आदम! तू और तेरी जोरू बहिश्त में रह कर आनन्द में जहाँ चाहो खाओ परन्तु मत समीप जाओ उस वृक्ष के कि पापी हो जाओगे।। शैतान ने उन को डिगाया और उन को बहिश्त के आनन्द से खो दिया। तब हम ने कहा कि उतरो तुम्हारे में कोई परस्पर शत्रु है। तुम्हारा ठिकाना पृथिवी है और एक समय तक लाभ है।। आदम अपने मालिक की कुछ बातें सीखकर पृथिवी पर आ गया।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ३५। ३६। ३७।।

(समीक्षक) अब देखिये खुदा की अल्पज्ञता! अभी तो स्वर्ग में रहने का आशीर्वाद दिया और पुनः थोड़ी देर में कहा कि निकलो। जो भविष्यत् बातों को जानता होता तो वर ही क्यों देता? और बहकाने वाले शैतान को दण्ड देने से असमर्थ भी दीख पड़ता है। और वह वृक्ष किस के लिये उत्पन्न किया था? क्या अपने लिये वा दूसरे के लिये ? जो अपने लिये किया तो उस को क्या जरूरत थी? और जो दूसरे के लिये तो क्यों रोका? इसलिये ऐसी बातें न खुदा की और न उसके बनाये पुस्तक में हो सकती हैं। आदम साहेब खुदा से कितनी बातें सीख आये? और जब पृथिवी पर आदम साहेब आये तब किस प्रकार आये? क्या वह बहिश्त पहाड़ पर है वा आकाश पर? उस से कैसे उतर आये? अथवा पक्षी के तुल्य आये अथवा जैसे ऊपर से पत्थर गिर पड़े? इस में यह विदित होता है कि जब आदम साहेब मट्टी से बनाये गये तो इन के स्वर्ग में भी मट्टी होगी। और जितने वहाँ और हैं वे भी वैसे ही फरिश्ते आदि होंगे, क्योंकि मट्टी के शरीर विना इन्द्रिय भोग नहीं हो सकता। जब पार्थिव शरीर है तो मृत्यु भी अवश्य होना चाहिये। यदि मृत्यु होता है तो वे वहाँ से कहां जाते हैं? और मृत्यु नहीं होता तो उन का जन्म भी नहीं हुआ। जब जन्म है तो मृत्यु अवश्य ही है। यदि ऐसा है तो कुरान में लिखा है कि बीबियां सदैव बहिश्त में रहती हैं सो झूठा हो जायगा क्योंकि उन का भी मृत्यु अवश्य होगा। जब ऐसा है तो बहिश्त में जाने वालों का भी मृत्यु अवश्य ही होगा।।१२।।

१३- उस दिन से डरो जब कोई जीव किसी जीव से कुछ भरोसा न रक्खेगा। न उस की सिफारिश स्वीकार की जावेगी, न उस से बदला लिया जावेगा और न वे सहाय पावेंगे।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ४८।।

(समीक्षक) क्या वर्त्तमान दिनों में न डरें? बुराई करने में सब दिन डरना चाहिये। जब सिफारिश न मानी जावेगी तो फिर पैगम्बर की गवाही वा सिफारिश से खुदा स्वर्ग देगा यह बात क्योंकर सच हो सकेगी? क्या खुदा बहिश्त वालों ही का सहायक है; दोजखवालों का नहीं? यदि ऐसा है तो खुदा पक्षपाती है।।१३।।

१४- हमने मूसा को किताब और मौजिजे दिये।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ५३।।

(समीक्षक) जो मूसा को किताब दी तो कुरान का होना निरर्थक है। और उस को आश्चर्यशक्ति दी यह बाइबल और कुरान में भी लिखा है परन्तु यह बात मानने योग्य नहीं। क्योंकि जो ऐसा होता तो अब भी होता, जो अब नहीं तो पहले भी न था। जैसे स्वार्थी लोग आज कल भी अविद्वानों के सामने विद्वान् बन जाते हैं वैसे उस समय भी कपट किया होगा। क्योंकि खुदा और उस के सेवक अब भी विद्यमान हैं पुनः इस समय खुदा आश्चर्यशक्ति क्यों नहीं देता? और नहीं कर सकते? जो मूसा को किताब दी थी तो पुनः कुरान का देना क्या आवश्यक था? क्योंकि जो भलाई बुराई करने न करने का उपदेश सर्वत्र एक सा हो तो पुनः भिन्न-भिन्न पुस्तक करने से पुनरुक्त दोष होता है। क्या मूसा जी आदि को दी हुई पुस्तकों में खुदा भूल गया था? ।।१४।।

१५- और कहो कि क्षमा मांगते हैं हम क्षमा करेंगे तुम्हारे पाप और अधिक भलाई करने वालों के।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ५२।।

(समीक्षक) भला यह खुदा का उपदेश सब को पापी बनाने वाला है वा नहीं? क्योंकि जब पाप क्षमा होने का आश्रय मनुष्यों को मिलता है तब पापों से कोई भी नहीं डरता। इसलिये ऐसा कहने वाला खुदा और यह खुदा का बनाया हुआ पुस्तक नहीं हो सकता क्योंकि वह न्यायकारी है, अन्याय कभी नहीं करता और पाप क्षमा करने में अन्यायकारी हो जाता है किन्तु यथापराध दण्ड ही देने में न्यायकारी हो सकता है।।१५।।

१६- जब मूसा ने अपनी कौम के लिये पानी मांगा, हम ने कहा कि अपना असा (दण्ड) पत्थर पर मार। उस में से बारह चश्मे बह निकले।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ६०।।

(समीक्षक) अब देखिये! इन असम्भव बातों के तुल्य दूसरा कोई कहेगा? एक पत्थर की शिला में डण्डा मारने से बारह झरनों का निकलना सर्वथा असम्भव है। हां! उस पत्थर को भीतर से पोलाकर उस में पानी भर बाहर छिद्र करने से सम्भव है; अन्यथा नहीं।।१६।।

१७- हम ने उन को कहा कि तुम निन्दित बन्दर हो जाओ यह एक भय दिया जो उन के सामने और पीछे थे उन को और शिक्षा ईमानदारों को।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ६५। ६६।।

(समीक्षक) जो खुदा ने निन्दित बन्दर हो जाना केवल भय देने के लिए कहा था तो उस का कहना मिथ्या हुआ वा छल किया। जो ऐसी बातें करता और जिस में ऐसी बातें हैं वह न खुदा और न यह पुस्तक खुदा का बनाया हो सकता है।।१७।।

१८- इस तरह खुदा मुर्दों को जिलाता है और तुम को अपनी निशानियाँ दिखलाता है कि तुम समझो।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ७३।।

(समीक्षक) क्या मुर्दों को खुदा जिलाता था तो अब क्यों नहीं जिलाता? क्या कयामत की रात तक कबरों में पड़े रहेंगे? आजकल दौड़ासुपुर्द हैं? क्या इतनी ही ईश्वर की निशानियां हैं? पृथिवी, सूर्य, चन्द्रादि निशानियां नहीं हैं? क्या संसार मं  जो विविध रचना विशेष प्रत्यक्ष दीखती हैं ये निशानियां कम हैं? ।।१८।।

१९- वे सदैव काल बहिश्त अर्थात् वैकुण्ठ में वास करने वाले हैं।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ८२।।

(समीक्षक) कोई भी जीव अनन्त पाप पुण्य करने का सामर्थ्य नहीं रखता इसलिये सदैव स्वर्ग नरक में नहीं रह सकते। और जो खुदा ऐसा करे तो वह अन्यायकारी और अविद्वान् हो जावे। कयामत की रात न्याय होगा तो मनुष्यों के पाप पुण्य बराबर होना उचित है। जो अनन्त नहीं है उस का फल अनन्त कैसे हो सकता है? और सृष्टि हुए सात आठ हजार वर्षों से इधर ही बतलाते हैं। क्या इस के पूर्व खुदा निकम्मा बैठा था? और कयामत के पीछे भी निकम्मा रहेगा? ये बातें सब लड़कों के समान हैं क्योंकि परमेश्वर के काम सदैव वर्त्तमान रहते हैं और जितने जिस के पाप पुण्य हैं उतना ही उसको फल देता है इसलिये कुरान की यह बात सच्ची नहीं।।१९।।

२०- जब हम ने तुम से प्रतिज्ञा कराई न बहाना लोहू अपने आपस के और किसी अपने आपस को घरों से न निकालना, फिर प्रतिज्ञा की तुम ने, इस के तुम ही साक्षी हो।। फिर तुम वे लोग हो कि अपने आपस को मार डालते हो, एक फिरके को आप में से घरों उन के से निकाल देते हो। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ८४। ८५।।

(समीक्षक) भला! प्रतिज्ञा करानी और करनी अल्पज्ञों की बात है वा परमात्मा की जब परमेश्वर सर्वज्ञ है तो ऐसी कड़ाकूट संसारी मनुष्य के समान क्यों करेगा? भला यह कौन सी भली बात है कि आपस का लोहू न बहाना, अपने मत वालों को घर से न निकालना, अर्थात् दूसरे मत वालों का लोहू बहाना, और घर से निकाल देना? यह मिथ्या मूर्खता और पक्षपात की बात है। क्या परमेश्वर प्रथम ही से नहीं जानता था कि ये प्रतिज्ञा से विरुद्ध करेंगे? इस से विदित होता है कि मुसलमानों का खुदा भी ईसाइयों की बहुत सी उपमा रखता है और यह कुरान स्वतन्त्र नहीं बन सकता क्योंकि इसमें से थोड़ी सी बातों को छोड़कर बाकी सब बातें बायबिल की हैं।।२०।।

२१- ये वे लोग हैं कि जिन्होंने आखरत के बदले जिन्दगी यहाँ की मोल ले ली। उन से पाप कभी हलका न किया जावेगा और न उन को सहायता दी जावेगी।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ८६।।

(समीक्षक) भला ऐसी ईर्ष्या द्वेष की बातें कभी ईश्वर की ओर से हो सकती हैं? जिन लोगों के पाप हलके किये जायेंगे वा जिन को सहायता दी जावेगी वे कौन हैं? यदि वे पापी हैं और पापों का दण्ड दिये विना हलके किये जावेंगे तो अन्याय होगा। जो सजा देकर हलके किये जावेंगे तो जिन का बयान इस आयत में है ये भी सजा पाके हलके हो सकते हैं। और दण्ड देकर भी हलके न किये जावेंगे तो भी अन्याय होगा। जो पापों से हलके किये जाने वालों से प्रयोजन धर्मात्माओं का है तो उन के पाप तो आप ही हलके हैं; खुदा क्या करेगा? इस से यह लेख विद्वान् का नहीं। और वास्तव में धर्मात्माओं को सुख और अधिर्म्मयों को दुःख उन के कर्मों के अनुसार सदैव देना चाहिये।।२१।।

२२- निश्चय हम ने मूसा को किताब दी और उस के पीछे हम पैगम्बर को लाये और मरियम के पुत्र ईसा को प्रकट मौजिजे अर्थात् दैवीशक्ति और सामर्थ्य दिये उस को साथ रूहल्कुद्स१ के। जब तुम्हारे पास उस वस्तु सहित पैगम्बर आया कि जिस को तुम्हारा जी चाहता नहीं; फिर तुम ने अभिमान किया। एक मत को झुठलाया और एक को मार डालते हो।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ८७।।

१- रूहल्कुद्स कहते हैं जबरईल को जो कि हरदम मसीह के साथ रहता था ।

(समीक्षक) जब कुरान में साक्षी है कि मूसा को किताब दी तो उस का मानना मुसलमानों को आवश्यक हुआ और जो-जो उस पुस्तक में दोष हैं वे भी मुसलमानों के मत में आ गिरे और ‘मौजिजे’ अर्थात् दैवी शक्ति की बातें सब अन्यथा हैं भोले भाले मनुष्यों को बहकाने के लिये झूंठ मूंठ चला ली हैं क्योंकि सृष्टिक्रम और विद्या से विरुद्ध सब बातें झूंठी ही होती हैं जो उस समय ‘‘मौजिजे’’ थे तो इस समय क्यों नहीं। जो इस समय भी नहीं तो उस समय भी न थे इस में कुछ भी सन्देह नहीं।।२२।।

२३- और इस से पहिले काफिरों पर विजय चाहते थे जो कुछ पहिचाना था जब उन के पास वह आया झट काफिर हो गये। काफिरों पर लानत है अल्लाह की।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ८९।।

(समीक्षक) क्या जैसे तुम अन्य मत वालों को काफिर कहते हो वैसे वे तुम को काफिर नहीं कहते हैं? और उन के मत के ईश्वर की ओर से धिक्कार देते हैं फिर कहो कौन सच्चा और कौन झूठा? जो विचार कर देखते हैं तो सब मत वालों में झूठ पाया जाता है जो सच है सो सब में एक सा है, ये सब लड़ाइयां मूर्खता की हैं।।२३।।

२४- आनन्द का सन्देशा ईमानदारों को।। अल्लाह, फरिश्तों, पैगम्बरों जिबरईल और मीकाईल का जो शत्रु है अल्लाह भी ऐसे काफिरों का शत्रु है।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ९७।९८।।

(समीक्षक) जब मुसलमान कहते हैं कि ‘खुदा लाशरीक’ है फिर यह फौज की फौज ‘शरीक’ कहां से कर दी? क्या जो औरों का शत्रु वह खुदा का भी शत्रु है। यदि ऐसा है तो ठीक नहीं क्योंकि ईश्वर किसी का शत्रु नहीं हो सकता।।२४।।

२५- और अल्लाह खास करता है जिस को चाहता है साथ दया अपनी के।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० १०३।।

(समीक्षक) क्या जो मुख्य और दया करने के योग्य न हो उस को भी प्रधान बनाता और उस पर दया करता है? जो ऐसा है तो खुदा बड़ा गड़बड़िया है क्योंकि फिर अच्छा काम कौन करेगा? और बुरे कर्म को कौन छोड़ेगा? क्योंकि खुदा की प्रसन्नता पर निर्भर करते हैं, कर्मफल पर नहीं, इस से सब को अनास्था होकर कर्मोच्छेदप्रसंग होगा।।२५।।

२६- ऐसा न हो कि काफिर लोग ईर्ष्या करके तुम को ईमान से फेर देवें क्योंकि उन में से ईमान वालों के बहुत से दोस्त हैं।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० १०१।।

(समीक्षक) अब देखिये! खुदा ही उन को चिताता है कि तुम्हारे ईमान को काफिर लोग न डिगा देवें। क्या वह सर्वज्ञ नहीं है? ऐसी बातें खुदा की नहीं हो सकती हैं।।२६।।

२७- तुम जिधर मुंह करो उधर ही मुंह अल्लाह का है।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ११५।।

(समीक्षक) जो यह बात सच्ची है तो मुसलमान ‘किबले’ की ओर मुंह क्यों करते हैं? जो कहें कि हम को किबले की ओर मुंह करने का हुक्म है तो यह भी हुक्म है कि चाहें जिधर की ओर मुख करो। क्या एक बात सच्ची और दूसरी बात झूठी होगी? और जो अल्लाह का मुख है तो वह सब ओर हो ही नहीं सकता। क्योंकि एक मुख एक ओर रहेगा, सब ओर क्योंकर रह सकेगा? इसलिए यह संगत नहीं।।२७।।

२८- जो आसमान और भूमि का उत्पन्न करने वाला है। जब वो कुछ करना चाहता है यह नहीं कि उस को करना पड़ता है किन्तु उसे कहता है कि हो जा! बस हो जाता है।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ११७।।

(समीक्षक) भला खुदा ने हुक्म दिया कि हो जा तो हुक्म किस ने सुना? और किस को सुनाया? और कौन बन गया? किस कारण से बनाया? जब यह लिखते हैं कि सृष्टि के पूर्व सिवाय खुदा के कोई भी दूसरा वस्तु न था तो यह संसार कहां से आया? विना कारण के कोई भी कार्य्य नहीं होता तो इतना बड़ा जगत् कारण के विना कहां से हुआ? यह बात केवल लड़कपन की है।

(पूर्वपक्षी) नहीं नहीं, खुदा की इच्छा से ।

(उत्तरपक्षी) क्या तुम्हारी इच्छा से एक मक्खी की टांग भी बन जा सकती है? जो कहते हो कि खुदा की इच्छा से यह सब कुछ जगत् बन गया।

(पूर्वपक्षी) खुदा सर्वशक्तिमान् है इसलिये जो चाहे सो कर लेता है।

(उत्तरपक्षी) सर्वशक्तिमान् का क्या अर्थ है?

(पूर्वपक्षी) जो चाहे सो कर सके।

(उत्तरपक्षी) क्या खुदा दूसरा खुदा भी बना सकता है? अपने आप मर सकता है? मूर्ख रोगी और अज्ञानी भी बन सकता है?

(पूर्वपक्षी) ऐसा कभी नहीं बन सकता।

(उत्तरपक्षी) इसलिये परमेश्वर अपने और दूसरों के गुण, कर्म, स्वभाव के विरुद्ध कुछ भी नहीं कर सकता। जैसे संसार में किसी वस्तु के बनने बनाने में तीन पदार्थ प्रथम अवश्य होते हैं-एक बनानेवाला जैसे कुम्हार, दूसरी घड़ा बनने वाली मिट्टी और तीसरा उस का साधन जिस से घड़ा बनाया जाता है। जैसे कुम्हार, मिट्टी और साधन से घड़ा बनता है और बनने वाले घड़े के पूर्व कुम्हार, मिट्टी और साधन होते हैं वैसे ही जगत् के बनने से पूर्व परमेश्वर जगत् का कारण प्रकृति और उन के गुण, कर्म, स्वभाव अनादि हैं। इसलिये यह कुरान की बात सर्वथा असम्भव है ।।२८।।

 

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God's superficiality! Just now blessed to be in heaven and again said in a while that get out. If someone who knew the future, why would he give the bride? And by punishing the deceptive devil, he also seems incapable. And for whom did that tree originate? What did he need if he did it for himself? Therefore, such things could not be written in God nor in his book. How many things did Adam Saheb learn from God? And when Adam Saheb came to Earth, how did he come? Is it out on the mountain or on the sky? How did he get off that?

 

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