चौदहवां समुल्लास खण्ड-6
७९- और काटे जड़ काफिरों की।। मैं तुम को सहाय दूंगा। साथ सहस्र फरिश्तों के पीछे पीछे आने वाले।। अवश्य मैं काफिरों के दिलों में भय डालूंगा। बस मारो ऊपर गर्दनों के मारो उन में से प्रत्येक पोरी (सन्धि) पर।। -मं० २। सि० ९। सू० ८। आ० ७। ९। १२।।
(समीक्षक) वाह जी वाह! कैसा खुदा और कैसे पैगम्बर दयाहीन। जो मुसलमानी मत से भिन्न काफिरों की जड़ कटवावे। और खुदा आज्ञा देवे उन की गर्दन पर मारो और हाथ पग के जोड़ों को काटने का सहाय और सम्मति देवे ऐसा खुदा लंकेश से क्या कुछ कम है? यह सब प्रपञ्च कुरान के कर्त्ता का है, खुदा का नहीं। यदि खुदा का हो तो ऐसा खुदा हम से दूर और हम उस से दूर रहें।।७९।।
८०- अल्लाह मुसलमानों के साथ है।। ऐ लोगो जो ईमान लाये हो पुकारना स्वीकार करो वास्ते अल्लाह के और वास्ते रसूल के ।। ऐ लोगो जो ईमान लाये हो मत चोरी करो अल्लाह की रसूल की और मत चोरी करो अमानत अपनी की।। और मकर करता था अल्लाह और अल्लाह भला मकर करने वालों का है।। -मं० २। सि० ९। सू० ८। आ० १९। २०। २९। ३०।।
(समीक्षक) क्या अल्लाह मुसलमानों का पक्षपाती है, जो ऐसा है तो अधर्म करता है। नहीं तो ईश्वर सब सृष्टि भर का है। क्या खुदा बिना पुकारे नहीं सुन सकता। बधिर है? और उस के साथ रसूल को शरीक करना बहुत बुरी बात नहीं है? अल्लाह का कौन सा ख़जाना भरा है जो चोरी करेगा? क्या रसूल और अपने अमानत की चोरी छोड़कर अन्य सब की चोरी किया करे? ऐसा उपदेश अविद्वान् और अधर्मियों का हो सकता है? भला! जो मकर करता और जो मकर करने वालों का संगी है वह खुदा कपटी, छली और अधर्मी क्यों नहीं ? इसलिये यह कुरान खुदा का बनाया हुआ नहीं है। किसी कपटी छली का बनाया होगा। नहीं तो ऐसी अन्यथा बातें लिखित क्यों होतीं? ।।८०।।
८१- और लड़ो उन से यहां तक कि न रहे फितना अर्थात् बल काफिरों का और होवे दीन तमाम वास्ते अल्लाह के।। और जानो तुम यह कि जो कुछ तुम लूटो किसी वस्तु से निश्चय वास्ते अल्लाह के है पाँचवाँ हिस्सा उस का और वास्ते रसूल के।। -मं० २। सि० ९। सू० ८। आ० ३९। ४१।।
(समीक्षक) ऐसे अन्याय से लड़ने लड़ाने वाला मुसलमानों के खुदा से भिन्न शान्तिभंगकर्ता दूसरा कौन होगा? अब देखिये यह मजहब कि अल्लाह और रसूल के वास्ते सब जगत् को लूटना लुटवाना लुटेरों का काम नहीं है? और लूट के माल में खुदा का हिस्सेदार बनना जानो डाकू बनना है और ऐसे लुटेरों का पक्षपाती बनना खुदा अपनी खुदाई में बट्टा लगाता है। बड़े आश्चर्य की बात है कि ऐसा पुस्तक, ऐसा खुदा और ऐसा पैगम्बर संसार में ऐसी उपाधि और शान्तिभंग करके मनुष्यों को दुःख देने के लिये कहां से आया? जो ऐसे-ऐसे मत जगत् में प्रचलित न होते तो सब जगत् आनन्द में बना रहता।।८१।।
८२- और कभी देखे तू जब काफिरों को फरिश्ते कब्ज करते हैं, मारते हैं, मुख उन के और पीठें उन की और कहते चखो अजाब जलने का।। हम ने उन के पाप से उन को मारा और हम ने फिराओन की कौम को डुबा दिया ।। और तैयारी करो वास्ते उन के जो कुछ तुम कर सको।। -मं० २। सि० ९। सू० ८। आ० ५०। ५४। ६०।।
(समीक्षक) क्यों जी! आजकल रूस ने रूम आदि और इंग्लैण्ड ने मिश्र की दुर्दशा कर डाली; फरिश्ते कहां सो गये? और अपने सेवकों के शत्रुओं को खुदा पूर्व मारता डुबाता था यह बात सच्ची हो तो आजकल भी ऐसा करे जिस से ऐसा नहीं होता इसलिये यह बात मानने योग्य नहीं? अब देखिये ! यह कैसी बुरी आज्ञा है कि जो कुछ तुम कर सको वह भिन्न मत वालों के लिये दुःखदायक कर्म करो। ऐसी आज्ञा विद्वान् और धार्मिक दयालु की नहीं हो सकती। फिर लिखते हैं कि खुदा दयालु और न्यायकारी है। ऐसी बातों से मुसलमानों के खुदा से न्याय और दयादि सद्गुण दूर बसते हैं।।८२।।
८३- ऐ नबी किफायत है तुझ को अल्लाह और उन को जिन्होंने मुसलमानों से तेरा पक्ष किया।। ऐ नबी रगबत अर्थात् चाह चस्का दे मुसलमानों को ऊपर लड़ाई के, जो हों तुम में से २० आदमी सन्तोष करने वाले तो पराजय करें दो सौ का।। बस खाओ उस वस्तु से कि लूटा है तुमने हलाल पवित्र और डरो अल्लाह से वह क्षमा करने वाला दयालु है।। -मं० २। सि० १०। सू० ८। आ० ६४। ६५। ६९।।
(समीक्षक) भला यह कौन सी न्याय, विद्वत्ता और धर्म की बात है कि जो अपना पक्ष करे और चाहें अन्याय भी करे उसी का पक्ष और लाभ पहुँचावे? और जो प्रजा में शान्तिभंग करके लड़ाई करे करावे और लूट मार के पदार्थों को हलाल बतलावे और फिर उसी का नाम क्षमावान् दयालु लिखे यह बात खुदा की तो क्या किन्तु किसी भले आदमी की भी नहीं हो सकती। ऐसी-ऐसी बातों से कुरान ईश्वरवाक्य कभी नहीं हो सकता।।८३।।
८४- सदा रहेंगे बीच उस के, अल्लाह समीप है उस के पुण्य बड़ा।। ऐ लोगो! जो ईमान लाये हो मत पकड़ो बापों अपने को और भाइयों अपने को मित्र जो दोस्त रखें कुफ्र को ऊपर ईमान के।। फिर उतारी अल्लाह ने तसल्ली अपनी ऊपर रसूल अपने के और ऊपर मुसलमानों के और उतारे लश्कर नहीं देखा तुम ने उन को और अजाब किया उन लोगों को और यही सजा है काफिरों को।। फिर-फिर आवेगा अल्लाह पीछे उस के ऊपर।। और लड़ाई करो उन लोगों से जो ईमान नहीं लाते।। -मं० २। सि० १०। सू० ९। आ० २२। २३। २६। २७।।
(समीक्षक) भला जो बहिश्तवालों के समीप अल्लाह रहता है तो सर्वव्यापक क्योंकर हो सकता है? जो सर्वव्यापक नहीं तो सृष्टिकर्त्ता और न्यायाधीश नहीं हो सकता। और अपने माँ, बाप, भाई और मित्र को छुड़वाना केवल अन्याय की बात है। हां! जो वे बुरा उपदेश करें; न मानना परन्तु उन की सेवा सदा करनी चाहिये। जो पहले खुदा मुसलमानों पर बड़ा सन्तोषी था; और उनके सहाय के लिए लश्कर उतारता था सच हो तो अब ऐसा क्यों नहीं करता? और जो प्रथम काफिरों को दण्ड देता और पुनः उसके ऊपर आता था तो अब कहाँ गया? क्या विना लड़ाई के ईमान खुदा नहीं बना सकता? ऐसे खुदा को हमारी ओर से सदा तिलाञ्जलि है, खुदा क्या है एक खिलाड़ी है? ।।८४।।
८५- और हम बाट देखने वाले हैं वास्ते तुम्हारे यह कि पहुँचावें तुम को अल्लाह अजाब अपने पास से वा हमारे हाथों से।। -मं० २। सि० १०। सू० ९। आ० ५२।।
(समीक्षक) क्या मुसलमान ही ईश्वर की पुलिस बन गये हैं कि अपने हाथ वा मुसलमानों के हाथ से अन्य किसी मत वालों को पकड़ा देता है? क्या दूसरे क्रोड़ों मनुष्य ईश्वर को अप्रिय हैं? मुसलमानों में पापी भी प्रिय हैं? यदि ऐसा है तो अन्धेर नगरी गवरगण्ड राजा की सी व्यवस्था दीखती है। आश्चर्य है कि जो बुद्धिमान् मुसलमान हैं वे भी इस निर्मूल अयुक्त मत को मानते हैं।।८५।।
८६- प्रतिज्ञा की है अल्लाह ने ईमान वालों से और ईमानवालियों से बहिश्तें चलती हैं नीचे उन के से नहरें सदैव रहने वाली बीच उस के और घर पवित्र बीच बहिश्तों अदन के और प्रसन्नता अल्लाह की ओर बड़ी है और यह कि वह है मुराद पाना बड़ा।। बस ठट्ठा करते हैं उन से, ठट्ठा किया अल्लाह ने उन से।। -मं० २। सि० १०। सू० ९। आ० ७३। ८०।।
(समीक्षक) यह खुदा के नाम से स्त्री पुरुषों को अपने मतलब के लिये लोभ देना है। क्योंकि जो ऐसा प्रलोभन न देते तो कोई मुहम्मद साहेब के जाल में न फंसता। ऐसे ही अन्य मत वाले भी किया करते हैं। मनुष्य लोग तो आपस में ठट्ठा किया ही करते हैं परन्तु खुदा को किसी से ठट्ठा करना उचित नहीं है। यह कुरान क्या है बड़ा खेल है।।८६।।
८७- परन्तु रसूल और जो लोग कि साथ उसके ईमान लाये जिहाद किया उन्होंने साथ धन अपने के तथा जानों अपनी के और इन्हीं लोगों के लिये भलाई है ।। और मोहर रक्खी अल्लाह ने ऊपर दिलों उन के, बस वे नहीं जानते।। -मं० २। सि० १०। सू० ९। आ० ८८। ९३।।
(समीक्षक) अब देखिये मतलबसिन्धु की बात! कि वे ही भले हैं जो मुहम्मद साहेब के साथ ईमान लाये और जो नहीं लाये वे बुरे हैं! क्या यह बात पक्षपात और अविद्या से भरी हुई नहीं है? जब खुदा ने मोहर ही लगा दी तो उन का अपराध पाप करने में कोई भी नहीं किन्तु खुदा ही का अपराध है क्योंकि उन बिचारों को भलाई से दिलों पर मोहर लगा के रोक दिये; यह कितना बड़ा अन्याय है!!! ।।८७।।
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Nowadays Russia plunges the room etc. and England plunges Egypt; Where did the angels sleep? And he used to kill the enemies of his servants before God. If this thing is true then even today, do it so that it does not happen, so this thing is not acceptable? See now This is such a bad command that whatever you can do, do sad things for different people. Such a commandment cannot be of the learned and religious kind. Then he writes that God is kind and just. Such things settle justice and mercy away from the Gods of Muslims.
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