चौदहवां समुल्लास खण्ड-8
९५- जब यूसुफ ने अपने बाप से कहा कि ऐ बाप मेरे मैंने एक स्वप्न में देखा।। -मं० ३। सि० १२। सू० १२। आ० ४ से ५९ तक।।
(समीक्षक) इस प्रकरण में पिता पुत्र का संवादरूप किस्सा कहानी भरी है इसलिये कुरान ईश्वर का बनाया नहीं। किसी मनुष्य ने मनुष्यों का इतिहास लिख दिया है।।९५।।
९६- अल्लाह वह है कि जिस ने खड़ा किया आसमानों को विना खम्भे के देखते हो तुम उस को। फिर ठहरा ऊपर अर्श के। आज्ञा वर्तने वाला किया सूरज और चांद को।। और वही है जिस ने बिछाया पृथिवी को।। उतारा आसमान से पानी बस बहे नाले साथ अन्दाजे अपने के।। अल्लाह खोलता है भोजन को वास्ते जिस को चाहे और तंग करता है।। -मं० ३। सि० १३। सू० १३। आ० २। ३। १७। २६।।
(समीक्षक) मुसलमानों का खुदा पदार्थविद्या कुछ भी नहीं जानता था। जो जानता तो गुरुत्व न होने से आसमान को खम्भे लगाने की कथा कहानी कुछ भी न लिखता। यदि खुदा अर्शरूप एक स्थान में रहता है तो वह सर्वशक्तिमान् और सर्वव्यापक नहीं हो सकता । और जो खुदा मेघविद्या जानता तो आकाश से पानी उतारा लिखा पुनः यह क्यों न लिखा कि पृथिवी से पानी ऊपर चढ़ाया। इससे निश्चय हुआ कि कुरान का बनाने वाला मेघ की विद्या को भी नहीं जानता था। और जो विना अच्छे बुरे कामों के सुख दुःख देता है तो पक्षपाती अन्यायकारी निरक्षर भट्ट है।।९६।।
९७- कह निश्चय अल्लाह गुमराह करता है जिस को चाहता है और मार्ग दिखलाता है तर्फ अपनी उस मनुष्य को रुजू करता है।। -मं० ३। सि० १३। सू० १३। आ० २७।।
(समीक्षक) जब अल्लाह गुमराह करता है तो खुदा और शैतान में क्या भेद हुआ? जब कि शैतान दूसरों को गुमराह अर्थात् बहकाने से बुरा कहाता है तो खुदा भी वैसा ही काम करने से बुरा शैतान क्यों नहीं? और बहकाने के पाप से दोजखी क्यों नहीं होना चाहिये? ।।९७।।
९८- इसी प्रकार उतारा हम ने इस कुरान को अर्बी में, जो पक्ष करेगा तू उन की इच्छा का पीछे इस के आई तेरे पास विद्या से।। बस सिवाय इस के नहीं कि ऊपर तेरे पैगाम पहुँचाना है और ऊपर हमारे है हिसाब लेना।। -मं० ३। सि० १३। सू० १३। आ० ३७। ४०।।
(समीक्षक) कुरान किधर की ओर से उतारा? क्या खुदा ऊपर रहता है? जो यह बात सच्च है तो वह एकदेशी होने से ईश्वर ही नहीं हो सकता क्योंकि ईश्वर सब ठिकाने एकरस व्यापक है। पैगाम पहुँचाना हल्कारे का काम है और हल्कारे की आवश्यकता उसी को होती है जो मनुष्यवत् एकदेशी हो। और हिसाब लेना देना भी मनुष्य का काम है; ईश्वर का नहीं क्योंकि वह सर्वज्ञ है। यह निश्चय होता है कि किसी अल्पज्ञ मनुष्य का बनाया कुरान है।।९८।।
९९- और किया सूर्य चन्द्र को सदैव फिरने वाला।। निश्चय आदमी अवश्य अन्याय और पाप करने वाला है।। -मं० ३। सि० १३। सू० १४। आ० ३३। ३४।।
(समीक्षक) क्या चन्द्र, सूर्य सदा फिरते और पृथिवी नहीं फिरती? जो पृथिवी नहीं फिरे तो कई वर्षों का दिन रात होवे। और जो मनुष्य निश्चय अन्याय और पाप करने वाला है तो कुरान से शिक्षा करना व्यर्थ है। क्योंकि जिन का स्वभाव पाप ही करने का है तो उन में पुण्यात्मता कभी न होगी और संसार में पुण्यात्मा और पापात्मा सदा दीखते हैं। इसलिये ऐसी बात ईश्वरकृत पुस्तक की नहीं हो सकती।।९९।।
१००- बस जब ठीक करूँ मैं उस को और फूंक दूं बीच उसके रूह अपनी से। बस गिर पड़ो वास्ते उस के सिजदा करते हुए।। कहा ऐ रब मेरे, इस कारण कि गुमराह किया तू ने मुझ को अवश्य जीनत दूंगा मैं वास्ते उन के बीच पृथिवी के और गुमराह करूंगा।। -मं० ३। सि० १४। सू० १५। आ० २९। से ३९। तक।।
(समीक्षक) जो खुदा ने अपनी रूह आदम साहेब में डाली तो वह भी खुदा हुआ और जो वह खुदा न था तो सिजदा अर्थात् नमस्कारादि भक्ति करने में अपना शरीक क्यों किया? जब शैतान को गुमराह करने वाला खुदा ही है तो वह शैतान का भी शैतान बड़ा भाई गुरु क्यों नहीं? क्योंकि तुम लोग बहकाने वाले को शैतान मानते हो तो खुदा ने भी शैतान को बहकाया और प्रत्यक्ष शैतान ने कहा कि मैं बहकाऊंगा। फिर भी उस को दण्ड देकर कैद क्यों न किया? और मार क्यों न डाला? ।।१००।।
१०१- और निश्चय भेजे हम ने बीच हर उम्मत के पैगम्बर।। जब चाहते हैं हम उस को, यह कहते हैं हम उस को हो! बस हो जाती है।। -मं० ३। सि० १४। सू० १६। आ० ३५।४०।।
(समीक्षक) जो सब कौमों पर पैगम्बर भेजे हैं तो सब लोग जो कि पैगम्बर की राय पर चलते हैं वे काफिर क्यों? क्या दूसरे पैगम्बर का मान्य नहीं सिवाय तुम्हारे पैगम्बर के? यह सर्वथा पक्षपात की बात है। जो सब देश में पैगम्बर भेजे तो आर्य्यावर्त में कौन सा भेजा? इसलिये यह बात मानने योग्य नहीं। जब खुदा चाहता है और कहता है कि पृथिवी हो जा, वह जड़ कभी नहीं सुन सकती। खुदा का हुक्म क्योंकर बजा सकेगा? और सिवाय खुदा के दूसरी चीज नहीं मानते तो सुना किस ने? और हो कौन गया? ये सब अविद्या की बातें हैं। ऐसी बातों को अनजान लोग मानते हैं।।१०१।।
१०२- और नियत करते हैं वास्ते अल्लाह के बेटियां-पवित्रता है उस को- और वास्ते उनके हैं जो कुछ चाहें।। कसम अल्लाह की अवश्य भेजे हम ने पैगम्बर।। -मं० ३। सि० १४। सू० १६। आ० ५७। ६३।।
(समीक्षक) अल्लाह बेटियों से क्या करेगा? बेटियां तो किसी मनुष्य को चाहिये, क्यों बेटे नियत नहीं किये जाते और बेटियां नियत की जाती हैं? इस का क्या कारण है? बताइये? कसम खाना झूठों का काम है, खुदा की बात नहीं। क्योंकि बहुधा संसार में ऐसा देखने में आता है कि जो झूठा होता है वही कसम खाता है। सच्चा सौगन्ध क्यों खावे? ।।१०२।।
१०३- ये लोग वे हैं कि मोहर रक्खी अल्लाह ने ऊपर दिलों उन के और कानों उन के और आंखों उन की के और ये लोग वे हैं बेखबर।। और पूरा दिया जावेगा हर जीव को जो कुछ किया है और वे अन्याय न किये जावेंगे।। -मं० ३। सि० १४। सू० १६। आ० १०८-१११।।
(समीक्षक) जब खुदा ही ने मोहर लगा दी तो वे बिचारे विना अपराध मारे गये क्योंकि उन को पराधीन कर दिया। यह कितना बड़ा अपराध है? और फिर कहते हैं कि जिस ने जितना किया है उतना ही उस को दिया जायगा; न्यूनाधिक नहीं। भला! उन्होंने स्वतन्त्रता से पाप किये ही नहीं किन्तु खुदा के कराने से किये। पुनः उन का अपराध ही न हुआ। उन को फल न मिलना चाहिये। इस का फल खुदा को मिलना उचित है। और जो पूरा दिया जाता है तो क्षमा किस बात की जाती है? जो क्षमा की जाती है तो न्याय उड़ जाता है। ऐसा गड़बड़ाध्याय ईश्वर का कभी नहीं हो सकता किन्तु निर्बुद्धि छोकरों का होता है।।१०३।।
१०४- और किया हमने दोजख को वास्ते काफिरों के घेरने वाला स्थान।। और हर आदमी को लगा दिया हम ने उस को अमलनामा उस का बीच गर्दन उस की के और निकालेंगे हम वास्ते उस के दिन कयामत के एक किताब कि देखेगा उस को खुला हुआ।। और बहुत मारे हम ने कुरनून से पीछे नूह के।। -मं० ४। सि० १५। सू० १७। आ० ८-१३। १७।।
(समीक्षक) यदि काफिर वे ही हैं कि जो कुरान, पैगम्बर और कुरान के कहे खुदा, सातवें आसमान और नमाज आदि को न मानें और उन्हीं के लिये दोजख होवे तो यह बात केवल पक्षपात की ठहरे क्योंकि कुरान ही के मानने वाले सब अच्छे और अन्य के मानने वाले सब बुरे कभी हो सकते हैं? यह बड़ी लड़कपन की बात है कि प्रत्येक की गर्दन में कर्मपुस्तक! हम तो किसी एक की भी गर्दन में नहीं देखते। यदि इस का प्रयोजन कर्मों का फल देना है तो फिर मनुष्यों के दिलों, नेत्रें आदि पर मोहर रखना और पापों का क्षमा करना क्या खेल मचाया है? कयामत की रात को किताब निकालेगा खुदा तो आज कल वह किताब कहां है? क्या साहूकार की बही समान लिखता रहता है? यहां यह विचारना चाहिये कि जो पूर्वजन्म नहीं तो जीवों के कर्म ही नहीं हो सकते फिर कर्म की रेखा क्या लिखी? जो विना कर्म के लिखा तो उन पर अन्याय किया क्योंकि विना अच्छे बुरे कर्म्मों के उन को दुःख-सुख क्यों दिया? जो कहो कि खुदा की मरजी, तो भी उसने अन्याय किया। अन्याय उस को कहते हैं कि विना बुरे भले कर्म किये दुःख सुखरूप फल न्यूनाधिक देना और उस समय खुदा ही किताब बांचेगा वा कोई सरिश्तेदार सुनावेगा? जो खुदा ही ने दीर्घकाल सम्बन्धी जीवों को विना अपराध मारा तो वह अन्यायकारी हो गया। जो अन्यायकारी होता है वह खुदा ही नहीं हो सकता।।१०४।।
१०५- और दिया हमने समूद को ऊंटनी प्रमाण।। और बहका जिस को बहका सके।। जिस दिन बुलावेंगे हम सब लोगों को साथ पेशवाओं उन के बस जो कोई दिया गया अमलनामा उस का बीच दहिने हाथ उस के।। -मं० ४। सि० १५। सू० १७। आ० ५९। ६४। ७१।।
(समीक्षक) वाह जी! जितनी खुदा की साश्चर्य निशानी हैं उन में से एक ऊंटनी भी खुदा के होने में प्रमाण अथवा परीक्षा में साधक है। यदि खुदा ने शैतान को बहकाने का हुक्म दिया तो खुदा ही शैतान का सरदार और सब पाप कराने वाला ठहरा। ऐसे को खुदा कहना केवल कम समझ की बात है। जब कयामत की रात अर्थात् प्रलय ही में न्याय करने कराने के लिये पैगम्बर और उन के उपदेश मानने वालों को खुदा बुलावेगा तो जब तक प्रलय न होगा तब तक सब दौरा सुपुर्द रहे और दौरा सुपुर्द सब को दुःखदायक है जब तक न्याय न किया जाय। इसलिये शीघ्र न्याय करना न्यायाधीश का उत्तम काम है। यह तो पोपांबाई का न्याय ठहरा। जैसे कोई न्यायाधीश कहे कि जब तक पचास वर्ष तक के चोर और साहूकार इकट्ठे न हों तब तक उन को दण्ड वा प्रतिष्ठा न करनी चाहिये। वैसा ही यह हुआ कि एक तो पचास वर्ष तक दौरा सुपुर्द रहा और एक आज ही पकड़ा गया। ऐसा न्याय का काम नहीं हो सकता। न्याय तो वेद और मनुस्मृति का देखो जिस में क्षण मात्र विलम्ब नहीं होता और अपने-अपने कर्मानुसार दण्ड वा प्रतिष्ठा सदा पाते रहते हैं। दूसरा पैगम्बरों को गवाही के तुल्य रखने से ईश्वर की सर्वज्ञता की हानि है। भला ! ऐसा पुस्तक ईश्वरकृत और ऐसे पुस्तक का उपदेश करने वाला ईश्वर कभी हो सकता है? कभी नहीं।।१०५।।
१०६- ये लोग वास्ते उन के हैं बाग हमेशह रहने के, चलती हैं नीचे उन के से नहरें, गहना पहिराये जावेंगे बीच उस के कंगन सोने के से और पोशाक पहिनेंगे वस्त्र हरित लाहि की से और ताफते की से तकिये किये हुए बीच उस के ऊपर तख़तों के। अच्छा है पुण्य और अच्छी है बहिश्त लाभ उठाने की।। -मं० ४। सि० १५। सू० १८। आ० ३१।।
(समीक्षक) वाह जी वाह! क्या कुरान का स्वर्ग है जिस में बाग, गहने, कपड़े, गद्दी, तकिये आनन्द के लिये हैं। भला! कोई बुद्धिमान् यहां विचार करे तो यहां से वहाँ मुसलमानों के बहिश्त में अधिक कुछ भी नहीं है सिवा अन्याय के, वह यह कि कर्म उन के अन्त वाले और फल उन का अनन्त। और जो मीठा नित्य खावे तो थोड़े दिन में विष के समान प्रतीत होता है। जब सदा वे सुख भोगेंगे तो उन को सुख ही दुःखरूप हो जायगा। इसलिये महाकल्प पर्यन्त मुक्तिसुख भोग के पुनर्जन्म पाना ही सत्य सिद्धान्त है।।१०६।।
१०७- और यह बस्तियां हैं कि मारा हम ने उन को जब अन्याय किया उन्होंने और हम ने उन के मारने की प्रतिज्ञा स्थापन की।। -मं० ४। सि० १५। सू० १८। आ० ५९।।
(समीक्षक) भला! सब बस्ती भर पापी कभी हो सकती है? और पीछे से प्रतिज्ञा करने से ईश्वर सर्वज्ञ नहीं रहा क्योंकि जब उन का अन्याय देखा तो प्रतिज्ञा की, पहिले नहीं जानता था। इस से दयाहीन भी ठहरा।।१०७।।
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The Gods of God did not know anything. Who knows if there is no gravity, nothing would write the story of the pillar of the sky. If God resides in one place, he cannot be omnipotent and omnipresent. And if God knew the cloud, then he took down water from the sky, why did he not write again that he made water rise from the earth. This ensured that the creator of the Quran did not even know the wisdom of the cloud. And the one who hurts the pleasures of good and evil, then the unjust illiterate Bhatt is biased.
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