द्वितीय समुल्लास खण्ड-2
(प्रश्न) क्या जो यह जन्मपत्र है सो निष्फल है।
(उत्तर) हां, वह जन्मपत्र नहीं किन्तु उसका नाम ‘शोकपत्र’ रखना चाहिये क्योंकि जब सन्तान का जन्म होता है तब सब को आनन्द होता है। परन्तु वह आनन्द तब तक होता है कि जब तक जन्मपत्र बनके ग्रहों का फल न सुने। जब पुरोहित जन्मपत्र बनाने को कहता है तब उस के माता, पिता पुरोहित से कहते हैं-‘महाराज! आप बहुत अच्छा जन्मपत्र बनाइये’ जो धनाढ्य हों तो बहुत सी लाल पीली रेखाओं से चित्र विचित्र और निर्धन हो तो साधारण रीति से जन्मपत्र बनाके सुनाने को आता है। तब उसके मां बाप ज्योतिषी जी के सामने बैठ के कहते हैं-‘इस का जन्मपत्र अच्छा तो है? ’ ज्योतिषी कहता है-‘जो है सो सुना देता हूं। इसके जन्मग्रह बहुत अच्छे और मित्रग्रह भी बहुत अच्छे हैं जिन का फल धनाढ्य और प्रतिष्ठावान्, जिस सभा में जा बैठेगा तो सब के ऊपर इस का तेज पड़ेगा। शरीर से आरोग्य और राज्यमानी होगा।’ इत्यादि बातें सुनके पिता आदि बोलते हैं-‘वाह वाह ज्योतिषी जी! आप बहुत अच्छे हो।’ ज्योतिषी जी समझते हैं इन बातों से कार्य्य सिद्ध नहीं होता। तब ज्योतिषी बोलता है-‘ये ग्रह तो बहुत अच्छे हैं परन्तु ये ग्रह क्रूर हैं अर्थात् फ़लाने-फ़लाने ग्रह के योग से ८ वर्ष में इस का मृत्युयोग है।’ इस को सुन के माता पितादि पुत्र के जन्म के आनन्द को छोड़ के शोकसागर में डूब कर ज्योतिषी से कहते हैं कि ‘महाराज जी! अब हम क्या करें? ’ तब ज्योतिषी जी कहते हैं- ‘उपाय करो’। गृहस्थ पूछे ‘क्या उपाय करें।’ ज्योतिषी जी प्रस्ताव करने लगते हैं कि ‘ऐसा-ऐसा दान करो। ग्रह के मन्त्र का जप कराओ और नित्य ब्राह्मणों को भोजन कराओगे तो अनुमान है कि नवग्रहों के विघ्न हट जायेंगे।’ अनुमान शब्द इसलिये है कि जो मर जायेगा तो कहेंगे हम क्या करें परमेश्वर के ऊपर कोई नहीं है। हम ने तो बहुत सा यत्न किया और तुम ने कराया, उस के कर्म ऐसे ही थे। और जो बच जाय तो कहते है कि देखो-हमारे मन्त्र, देवता और ब्राह्मणों की कैसी शक्ति है? तुम्हारे लड़के को बचा दिया। यहां यह बात होनी चाहिये कि जो इनके जप पाठ से कुछ न हो तो दूने तिगुने रुपये उन धूर्तों से ले लेने चाहिये और बच जाय तो भी ले लेने चाहिये क्योंकि जैसे ज्योतिषियों ने कहा कि ‘इस के कर्म और परमेश्वर के नियम तोड़ने का सामर्थ्य किसी का नहीं ।’ वैसे गृहस्थ भी कहें कि ‘यह अपने कर्म और परमेश्वर के नियम से बचा है, तुम्हारे करने से नहीं’ और तीसरे गुरु आदि भी पुण्य दान करा के आप ले लेते हैं तो उनको भी वही उत्तर देना, जो ज्योतिषियों को दिया था।
अब रह गई शीतला और मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र आदि। ये भी ऐसे ही ढोंग मचाते हैं। कोई कहता है कि ‘जो हम मन्त्र पढ़ के डोरा वा यन्त्र बना देवें तो हमारे देवता और पीर उस मन्त्र, यन्त्र के प्रताप से उस को कोई विघ्न नहीं होने देते।’ उन को वही उत्तर देना चाहिये कि क्या तुम मृत्यु, परमेश्वर के नियम और कर्मफल से भी बचा सकोगे? तुम्हारे इस प्रकार करने से भी कितने ही लड़के मर जाते हैं और तुम्हारे घर में भी मर जाते हैं और क्या तुम मरण से बच सकोगे? तब वे कुछ भी नहीं कह सकते और वे धूर्त्त जान लेते हैं कि यहां हमारी दाल नहीं गलेगी। इस से इन सब मिथ्या व्यवहारों को छोड़ कर धार्मिक, सब देश के उपकारकर्त्ता, निष्कपटता से सब को विद्या पढ़ाने वाले, उत्तम विद्वान् लोगों का प्रत्युपकार करना जैसा वे जगत् का उपकार करते हैं, इस काम को कभी न छोड़ना चाहिये। और जितनी लीला रसायन, मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण आदि करना कहते हैं उन को भी महापामर समझना चाहिये।
इत्यादि मिथ्या बातों का उपदेश बाल्यावस्था ही में सन्तानों के हृदय में डाल दें कि जिस से स्वसन्तान किसी के भ्रमजाल में पड़ के दुःख न पावें और वीर्य की रक्षा में आनन्द और नाश करने में दुःखप्राप्ति भी जना देनी चाहिये। जैसे- ‘देखो जिस के शरीर में सुरक्षित वीर्य रहता है तब उस को आरोग्य, बुद्धि, बल, पराक्रम बढ़ के बहुत सुख की प्राप्ति होती है। इसके रक्षण में यही रीति है कि विषयों की कथा, विषयी लोगों का संग, विषयों का ध्यान, स्त्री का दर्शन, एकान्त सेवन, सम्भाषण और स्पर्श आदि कर्म से ब्रह्मचारी लोग पृथक् रह कर उत्तम शिक्षा और पूर्ण विद्या को प्राप्त होवें। जिसके शरीर में वीर्य नहीं होता वह नपुंसक महाकुलक्षणी और जिस को प्रमेह रोग होता है वह दुर्बल, निस्तेज, निर्बुद्धि, उत्साह, साहस, धैर्य, बल, पराक्रमादि गुणों से रहित होकर नष्ट हो जाता है। जो तुम लोग सुशिक्षा और विद्या के ग्रहण, वीर्य की रक्षा करने में इस समय चूकोगे तो पुनः इस जन्म में तुम को यह अमूल्य समय प्राप्त नहीं हो सकेगा। जब तक हम लोग गृहकर्मों के करने वाले जीते हैं तभी तक तुम को विद्या-ग्रहण और शरीर का बल बढ़ाना चाहिये।’ इसी प्रकार की अन्य-अन्य शिक्षा भी माता और पिता करें।
इसीलिए ‘मातृमान् पितृमान्’ शब्द का ग्रहण उक्त वचन में किया है अर्थात् जन्म से ५वें वर्ष तक बालकों को माता, ६ वर्ष से ८वें वर्ष तक पिता शिक्षा करें और ९वें वर्ष के आरम्भ में द्विज अपने सन्तानों का उपनयन करके आचार्य कुल में अर्थात् जहां पूर्ण विद्वान् और पूर्ण विदुषी स्त्री शिक्षा और विद्यादान करने वाली हों वहां लड़के और लड़कियों को भेज दें और शूद्रादि वर्ण उपनयन किये विना विद्याभ्यास के लिये गुरुकुल में भेज दें।
उन्हीं के सन्तान विद्वान्, सभ्य और सुशिक्षित होते हैं, जो पढ़ाने में सन्तानों का लाड़न कभी नहीं करते किन्तु ताड़ना ही करते रहते हैं। इसमें व्याकरण महाभाष्य का प्रमाण है-
सामृतैः पाणिभिर्घ्नन्ति गुरवो न विषोक्षितैः।
लालनाश्रयिणो दोषास्ताडनाश्रयिणो गुणाः।।
अर्थ- जो माता, पिता और आचार्य, सन्तान और शिष्यों का ताड़न करते हैं वे जानो अपने सन्तान और शिष्यों को अपने हाथ से अमृत पिला रहे हैं और जो सन्तानों वा शिष्यों का लाड़न करते हैं वे अपने सन्तानों और शिष्यों को विष पिला के नष्ट भ्रष्ट कर देते हैं। क्योंकि लाड़न से सन्तान और शिष्य दोषयुक्त तथा ताड़ना से गुणयुक्त होते हैं और सन्तान और शिष्य लोग भी ताड़ना से प्रसन्न और लाड़न से अप्रसन्न सदा रहा करें। परन्तु माता, पिता तथा अध्यापक लोग ईर्ष्या, द्वेष से ताड़न न करें किन्तु ऊपर से भयप्रदान और भीतर से कृपादृष्टि रक्खें।
जैसे अन्य शिक्षा की वैसी चोरी, जारी, आलस्य, प्रमाद, मादक द्रव्य, मिथ्याभाषण, हिसा, क्रूरता, ईर्ष्या, द्वेष, मोह आदि दोषों को छोड़ने और सत्याचार के ग्रहण करने की शिक्षा करें। क्योंकि जिस पुरुष ने जिसके सामने एक वार चोरी, जारी, मिथ्याभाषणादि कर्म किया उस की प्रतिष्ठा उस के सामने मृत्युपर्य्यन्त नहीं होती। जैसी हानि प्रतिज्ञा मिथ्या करने वाले की होती है वैसी अन्य किसी की नहीं। इस से जिस के साथ जैसी प्रतिज्ञा करनी उस के साथ वैसे ही पूरी करनी चाहिये अर्थात् जैसे किसी ने किसी से कहा कि ‘मैं तुम को वा तुम मुझ से अमुक समय में मिलूँगा वा मिलना अथवा अमुक वस्तु अमुक समय में तुम को मैं दूँगा ।’ इस को वैसे ही पूरी करे नहीं तो उसकी प्रतीति कोई भी न करेगा, इसलिये सदा सत्यभाषण और सत्यप्रतिज्ञायुक्त सब को होना चाहिये। किसी को अभिमान करना योग्य नहीं, क्योंकि ‘अभिमानः श्रियं हन्ति’ यह विदुरनीति का वचन है। जो अभिमान अर्थात् अहंकार है वह सब शोभा और लक्ष्मी का नाश कर देता है, इस वास्ते अभिमान करना न चाहिये। छल, कपट वा कृतघ्नता से अपना हीे हृदय दुःखित होता है तो दूसरे की क्या कथा कहनी चाहिये। छल और कपट उसको कहते हैं जो भीतर और बाहर और दूसरे को मोह में डाल और दूसरे की हानि पर ध्यान न देकर स्वप्रयोजन सिद्ध करना। ‘कृतघ्नता’ उस को कहते हैं कि किसी के किए हुए उपकार को न मानना। क्रोधादि दोष और कटुवचन को छोड़ शान्त और मधुर वचन ही बोले और बहुत बकवाद न करे। जितना बोलना चाहिये उससे न्यून वा अधिक न बोले। बड़ों को मान्य दे, उन के सामने उठ कर जा के उच्चासन पर बैठावे, प्रथम ‘नमस्ते’ करे। उनके सामने उत्तमासन पर न बैठे। सभा में वैसे स्थान में बैठे जैसी अपनी योग्यता हो और दूसरा कोई न उठावे। विरोध किसी से न करे। सम्पन्न होकर गुणों का ग्रहण और दोषों का त्याग रक्खें। सज्जनों का संग और दुष्टों का त्याग, अपने माता, पिता और आचार्य की तन, मन और धनादि उत्तम-उत्तम पदार्थों से प्रीतिपूर्वक सेवा करें।
यान्यस्माकँ् सुचरितानि तानि त्वयोपास्यानि नो इतराणि।। यह तैत्ति०।
इसका यह अभिप्राय है कि माता पिता आचार्य्य अपने सन्तान और शिष्यों को सदा सत्य उपदेश करें और यह भी कहें कि जो-जो हमारे धर्मयुक्त कर्म हैं उन-उन का ग्रहण करो और जो-जो दुष्ट कर्म हों उनका त्याग कर दिया करो। जो-जो सत्य जाने उन-उन का प्रकाश और प्रचार करे। किसी पाखण्डी दुष्टाचारी मनुष्य पर विश्वास न करें और जिस-जिस उत्तम कर्म के लिये माता, पिता और आचार्य आज्ञा देवें उस-उस का यथेष्ट पालन करो। जैसे माता, पिता ने धर्म, विद्या, अच्छे आचरण के श्लोक ‘निघण्टु’ ‘निरुक्त’ ‘अष्टाध्यायी’ अथवा अन्य सूत्र वा वेदमन्त्र कण्ठस्थ कराये हों उन-उन का पुनः अर्थ विद्याथियों को विदित करावें। जैसे प्रथम समुल्लास में परमेश्वर का व्याख्यान किया है उसी प्रकार मान के उस की उपासना करें। जिस प्रकार आरोग्य, विद्या और बल प्राप्त हो उसी प्रकार भोजन छादन और व्यवहार करें करावें अर्थात् जितनी क्षुधा हो उस से कुछ न्यून भोजन करे। मद्य मांसादि के सेवन से अलग रहें। अज्ञात गम्भीर जल में प्रवेश न करें क्योंकि जलजन्तु वा किसी अन्य पदार्थ से दुःख और जो तरना न जाने तो डूब ही जा सकता है। ‘नाविज्ञाते जलाशये’ यह मनु का वचन। अविज्ञात जलाशय में प्रविष्ट होके स्नानादि न करें।
दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं जलं पिबेत्।
सत्यपूतां वदेद्वाचं मनःपूतं समाचरेत्।। मनु०।।
अर्थ-नीचे दृष्टि कर ऊँचे नीचे स्थान को देख के चले, वस्त्र से छान कर जल पिये, सत्य से पवित्र करके वचन बोले, मन से विचार के आचरण करे।
माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः।
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये वको यथा ।।
यह किसी कवि का वचन है।
वे माता और पिता अपने सन्तानों के पूर्ण वैरी हैं जिन्होंने उन को विद्या की प्राप्ति न कराई, वे विद्वानों की सभा में वैसे तिरस्कृत और कुशोभित होते हैं जैसे हंसों के बीच में बगुला। यही माता, पिता का कर्त्तव्य कर्म परमधर्म और कीर्ति का काम है जो अपने सन्तानों को तन, मन, धन से विद्या, धर्म, सभ्यता और उत्तम शिक्षायुक्त करना।
यह बालशिक्षा में थोड़ा सा लिखा, इतने ही से बुद्धिमान् लोग बहुत समझ लेंगे।
इति श्रीमद्दयानन्दसरस्वती स्वामिकृते सत्यार्थप्रकाशे सुभाषाविभूषिते बालशिक्षा विषये
द्वितीयः समुल्लासः सम्पूर्णः।।२।।
क्षेत्रीय कार्यालय (भोपाल)
आर्य समाज संस्कार केन्द्र
अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट भोपाल शाखा
गायत्री मन्दिर, CTO, Camp No. 12
रेलवे स्टेशन के पास, बैरागढ़
भोपाल (मध्य प्रदेश) 462030
हेल्पलाइन : 8989738486
www.bhopalaryasamaj.com
राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
नरेन्द्र तिवारी मार्ग, बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास, दशहरा मैदान के सामने
अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
दूरभाष : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
www.allindiaaryasamaj.com
---------------------------------------
Regional Office (Bhopal)
Arya Samaj Sanskar Kendra
Akhil Bharat Arya Samaj Trust Bhopal Branch
Gayatri Mandir, CTO Camp No.-12
Near Railway Station, Bairagarh
Bhopal (Madhya Pradesh) 462030
Helpline No.: 8989738486
www.bhopalaryasamaj.com
National Administrative Office
Akhil Bharat Arya Samaj Trust
Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
Narendra Tiwari Marg, Near Bank of India
Opp. Dussehra Maidan, Annapurna
Indore (M.P.) 452009
Tel. : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
www.allindiaaryasamaj.com
In its protection, it is the practice that the people of Brahmachari will get the best education and complete education by remaining separate from the stories of the subjects, the company of the people, the attention of the subjects, the philosophy of women, solitude, speech and touch. The person who does not have semen in his body is impotent megaloblast and the one who suffers from the disease is weak, weak, weak, enthusiasm, courage, patience, strength, devoid of mighty qualities and is destroyed.
Chaptar Second-2 Satyarth Prakash (Light of Truth) | arya samaj wedding procedure in Bhopal (8989738486) | Arya Samaj Mandir Bhopal | Arya Samaj Marriage Guidelines Bhopal Madhya Pradesh | inter caste marriage consultants in Bhopal | court marriage consultants in Bhopal | Arya Samaj Mandir marriage consultants in Bhopal Madhya Pradesh | arya samaj marriage certificate Bhopal | Procedure Of Arya Samaj Marriage Bhopal Madhya Pradesh | arya samaj marriage registration Bhopal | arya samaj marriage documents Bhopal | Procedure Of Arya Samaj Wedding Bhopal | arya samaj intercaste marriage Bhopal | arya samaj wedding Bhopal | arya samaj wedding rituals Bhopal Madhya Pradesh | arya samaj wedding legal Bhopal Madhya Pradesh | arya samaj shaadi Bhopal | arya samaj mandir shaadi Bhopal | arya samaj shadi procedure Bhopal | arya samaj mandir shadi valid Bhopal | arya samaj mandir shadi Bhopal Madhya Pradesh | inter caste marriage Bhopal | validity of arya samaj marriage certificate Bhopal | validity of arya samaj marriage Bhopal.
Arya Samaj Mandir Marriage Helpline Bhopal | Aryasamaj Mandir Helpline Bhopal | inter caste marriage Helpline Bhopal | inter caste marriage promotion for prevent of untouchability in Bhopal | Arya Samaj Bhopal | Arya Samaj Mandir Bhopal | arya samaj marriage Bhopal | arya samaj marriage rules Bhopal | inter caste marriage promotion for national unity by Arya Samaj Bhopal | human rights in Bhopal | human rights to marriage in Bhopal | Arya Samaj Marriage Ceremony Bhopal | Arya Samaj Wedding Ceremony Bhopal | Documents required for Arya Samaj marriage Bhopal | Arya Samaj Legal marriage service Bhopal.
Arya Samaj Pandits Helpline Bhopal | Arya Samaj Pandits Bhopal | Arya Samaj Pandits for marriage Bhopal | Arya Samaj Temple Bhopal | Arya Samaj Pandits for Havan Bhopal | Arya Samaj Pandits for Pooja Bhopal | Pandits for marriage Bhopal | Pandits for Pooja Bhopal | Arya Samaj Pandits for vastu shanti havan | Vastu Correction Without Demolition Bhopal | Arya Samaj Pandits for Gayatri Havan Bhopal | Vedic Pandits Helpline Bhopal | Hindu Pandits Helpline Bhopal | Pandit Ji Bhopal | Arya Samaj Intercast Matrimony Bhopal | Arya Samaj Hindu Temple Bhopal | Hindu Matrimony Bhopal | वेद | महर्षि दयानन्द सरस्वती | विवाह समारोह भोपाल | हवन भोपाल | आर्यसमाज पंडित भोपाल | आर्य समाजी पंडित भोपाल | अस्पृश्यता निवारणार्थ अन्तरजातीय विवाह भोपाल | आर्यसमाज मन्दिर भोपाल | आर्य समाज मन्दिर विवाह भोपाल | वास्तु शान्ति हवन भोपाल | आर्य समाज मन्दिर आर्य समाज विवाह भोपाल मध्य प्रदेश भारत | Arya Samaj Mandir Marriage Bhopal Madhya Pradesh India | सत्यार्थप्रकाशः