सप्तम समुल्लास खण्ड-6
(प्रश्न) अन्तःकरण के साथ ब्रह्म भी चलता फिरता है वा स्थिर रहता है?
(उत्तर)-स्थिर रहता है।
(प्रश्न) जब अन्तःकरण जिस-जिस देश को छोड़ता है उस-उस देश का ब्रह्म अज्ञानरहित और जिस-जिस देश को प्राप्त होता है उस-उस देश का शुद्ध ब्रह्म अज्ञानी होता होगा। वैसे क्षण में ज्ञानी और अज्ञानी ब्रह्म होता रहेगा। इससे मोक्ष और बन्ध भी क्षणभंग होगा और जैसे अन्य के देखे का अन्य स्मरण नहीं कर सकता वैसे कल की देखी सुनी हुई वस्तु वा बात का ज्ञान नहीं रह सकता। क्योंकि जिस समय देखा सुना था वह दूसरा देश और दूसरा काल; जिस समय स्मरण करता वह दूसरा देश और काल है।
जो कहो कि ब्रह्म एक है तो सर्वज्ञ क्यों नहीं? जो कहो कि अन्तःकरण भिन्न-भिन्न हैं, इस से वह भी भिन्न-भिन्न हो जाता होगा तो वह जड़ है। उस में ज्ञान नहीं हो सकता। जो कहो कि न केवल ब्रह्म और न केवल अन्तःकरण को ज्ञान होता है किन्तु अन्तःकरणस्थ चिदाभास को ज्ञान होता है तो भी चेतन ही को अन्तःकरण द्वारा ज्ञान हुआ तो वह नेत्र द्वारा अल्प अल्पज्ञ क्यों है? इसलिये कारणोपाधि और कार्योपाधि के योग से ब्रह्म जीव और ईश्वर नहीं बना सकोगे। किन्तु ईश्वर नाम ब्रह्म का है और ब्रह्म से भिन्न अनादि, अनुत्पन्न और अमृतस्वरूप जीव का नाम जीव है। जो तुम कहो कि जीव चिदाभास का नाम है तो वह क्षणभंग होने से नष्ट हो जायगा तो मोक्ष का सुख कौन भोगेगा? इसलिये ब्रह्म जीव और जीव ब्रह्म कभी न हुआ, न है और न होगा।
(प्रश्न) तो ‘सदेव सोम्येदमग्र आसीदेकमेवाद्वितीयम्’।। -छान्दोग्य०।।
अद्वैतसिद्धि कैसे होगी? हमारे मत में तो ब्रह्म से पृथक् कोई सजातीय, विजातीय और स्वगत अवयवों के भेद न होने से एक ब्रह्म ही सिद्ध होता है। जब जीव दूसरा है तो अद्वैतसिद्धि कैसे हो सकती है?
(उत्तर) इस भ्रम में पड़ क्यों डरते हो? विशेष्य विशेषण विद्या का ज्ञान करो कि उस का क्या फल है। जो कहो कि ‘व्यावर्त्तकं विशेषणं भवतीति ।’ विशेषण भेदकारक होता है तो इतना और भी मानो कि ‘प्रवर्त्तकं प्रकाशकमपि विशेषणं भवतीति ।’ विशेषण प्रवर्त्तक और प्रकाशक भी होता है तो समझो कि अद्वैत विशेषण ब्रह्म का है। इस में व्यावर्त्तक धर्म यह है कि अद्वैत वस्तु अर्थात् जो अनेक जीव और तत्त्व हैं उन से ब्रह्म को पृथक् करता है और विशेषण का प्रकाशक धर्म यह है कि ब्रह्म के एक होने की प्रवृत्ति करता है। जैसे-‘अस्मिन्नगरेऽद्वितीयो धनाढ्यो देवदत्तः। अस्यां सेनायामद्वितीयः शूरवीरो विक्रमसिहः।’ किसी ने किसी से कहा कि इस नगर में अद्वितीय धनाढ्य देवदत्त और इस सेना में अद्वितीय शूरवीर विक्रमसिह है। इस से क्या सिद्ध हुआ कि देवदत्त के सदृश इस नगर में दूसरा धनाढ्य और इस सेना में विक्रमसिह के समान दूसरा शूरवीर नहीं है। न्यून तो हैं और पृथिवी आदि जड़ पदार्थ, पश्वादि प्राणी और वृक्षादि भी हैं, उन का निषेध नहीं हो सकता। वैसे ही ब्रह्म के सदृश जीव वा प्रकृति नहीं है, किन्तु न्यून तो हैं। इस से यह सिद्ध हुआ कि ब्रह्म सदा एक है और जीव तथा प्रकृतिस्थ तत्त्व अनेक हैं। उन से भिन्न कर ब्रह्म के एकत्व को सिद्ध करने हारा अद्वैत वा अद्वितीय विशेषण है। इस से जीव वा प्रकृति का और कार्यरूप जगत् का अभाव और निषेध नहीं हो सकता। किन्तु ये सब हैं, परन्तु ब्रह्म के तुल्य नहीं। इस से न अद्वैतसिद्धि और न द्वैतसिद्धि की हानि होती है। घबराहट में मत पड़ो; सोचो और समझो।
(प्रश्न) ब्रह्म के सत्, चित्, आनन्द और जीव के अस्ति, भाति, प्रियरूप से एकता होती है। फिर क्यों खण्डन करते हो?
(उत्तर) किञ्चित् साधर्म्य मिलने से एकता नहीं हो सकती। जैसे पृथिवी जड़, दृश्य है वैसे जल और अग्नि आदि भी जड़ और दृश्य हैं; इतने से एकता नहीं होती। इनमें वैधर्म्य भेदकारक अर्थात् विरुद्ध धर्म जैसे गन्ध, रूक्षता, काठिन्य आदि गुण पृथिवी और रस द्रवत्व कोमलत्वादि धर्म जल और रूप दाहकत्वादि धर्म अग्नि के होने से एकता नहीं। जैसे मनुष्य और कीड़ी आंख से देखते, मुख से खाते, पग से चलते हैं तथापि मनुष्य की आकृति दो पग और कीड़ी की आकृति अनेक पग आदि भिन्न होने से एकता नहीं होती। वैसे परमेश्वर के अनन्त ज्ञान, आनन्द, बल, क्रिया, निर्भ्रान्तित्व और व्यापकता जीव से और जीव के अल्पज्ञान, अल्पबल, अल्पस्वरूप, सब भ्रान्तित्व और परिच्छिन्नतादि गुण ब्रह्म से भिन्न होने से जीव और परमेश्वर एक नहीं। क्योंकि इनका स्वरूप भी (परमेश्वर अतिसूक्ष्म और जीव उस से कुछ स्थूल होने से) भिन्न है।
(प्रश्न) अथोदरमन्तरं कुरुते, अथ तस्य भयं भवति। द्वितीयाद्वै भयं भवति।। यह बृहदारण्यक का वचन है। जो ब्रह्म और जीव में थोड़ा भी भेद करता है। उसको भय प्राप्त होता है, क्योंकि दूसरे ही से भय होता है।
(उत्तर) इस का अर्थ यह नहीं है किन्तु जो जीव परमेश्वर का निषेध वा किसी एक देश, काल में परिच्छिन्न परमात्मा को माने वा उस की आज्ञा और गुण, कर्म, स्वभाव से विरुद्ध होवे अथवा किसी दूसरे मनुष्य से वैर करे उस को भय प्राप्त होता है। क्योंकि द्वितीय बुद्धि अर्थात् ईश्वर का मुझ से कुछ सम्बन्ध नहीं तथा किसी मनुष्य से कहै कि तुझ को मैं कुछ नहीं समझता, तू मेरा कुछ भी नहीं कर सकता वा किसी की हानि करता और दुःख देता जाय तो उस को उन से भय होता है। और सब प्रकार का अविरोध हो तो वे एक कहाते हैं। जैसे संसार में कहते हैं कि देवदत्त, यज्ञदत्त और विष्णुमित्र एक हैं अर्थात् अविरुद्ध हैं। विरोध न रहने से सुख और विरोध से दुःख प्राप्त होता है।
(प्रश्न) ब्रह्म और जीव की सदा एकता अनेकता रहती है वा कभी दोनों मिल के एक भी होते हैं वा नहीं?
(उत्तर) अभी इस के पूर्व कुछ उत्तर दे दिया है परन्तु साधर्म्य अन्वयभाव से एकता होती है। जैसे आकाश से मूर्त्त द्रव्य जड़त्व होने से और कभी पृथक् न रहने से एकता और आकाश के विभु, सूक्ष्म, अरूप, अनन्त आदि गुण और मूर्त्त के परिच्छिन्न दृश्यत्व आदि वैधर्म्य से भेद होता है। अर्थात् जैसे पृथिव्यादि द्रव्य आकाश से भिन्न कभी नहीं रहते क्योंकि अन्वय अर्थात् अवकाश के विना मूर्त्त द्रव्य कभी नहीं रह सकता और व्यतिरेक अर्थात् स्वरूप से भिन्न होने से पृथक्ता है। वैसे ब्रह्म के व्यापक होने से जीव और पृथिवी आदि द्रव्य उस से अलग नहीं रहते और स्वरूप से एक भी नहीं होते। जैसे घर के बनाने के पूर्व भिन्न-भिन्न देश में मट्टी, लकड़ी और लोहा आदि पदार्थ आकाश में ही रहते हैं। जब घर बन गया तब भी आकाश में हैं और जब वह नष्ट हो गया अर्थात् उस घर के सब अवयव भिन्न-भिन्न देश में प्राप्त हो गये; तब भी आकाश में हैं। अर्थात् तीन काल में आकाश से भिन्न नहीं हो सकते औेर स्वरूप से भिन्न होने से न कभी एक थे; हैं और होंगे। इसी प्रकार जीव तथा सब संसार के पदार्थ परमेश्वर में व्याप्य होने से परमात्मा से तीनों कालों में भिन्न और स्वरूप भिन्न होने से एक कभी नहीं होते। आजकल के वेदान्तियों की दृष्टि काणे पुरुष के समान अन्वय की ओर पड़ के व्यतिरेकभाव से छूट विरुद्ध हो गई है। कोई भी ऐसा द्रव्य नहीं है कि जिस में सगुण-निर्गुणता, अन्वय-व्यतिरेक, साधर्म्य-वैधर्म्य और विशेष्य-विशेषण भाव न हो।
(प्रश्न) परमेश्वर सगुण है वा निर्गुण ?
(उत्तर) दोनों प्रकार है।
(प्रश्न) भला एक मियान में दो तलवार कभी नहीं रह सकती हैं! एक पदार्थ में सगुणता और निर्गुणता कैसे रह सकती हैं?
(उत्तर) जैसे जड़ के रूपादि गुण हैं और चेतन के ज्ञानादि गुण जड़ में नहीं हैं। वैसे चेतन में इच्छादि गुण हैं और रूपादि जड़ के गुण नहीं हैं। इसलिये ‘यद्गुणैस्सह वर्त्तमानं तत्सगुणम्’, गुणेभ्यो यन्निर्गतं पृथग्भूतं तन्निर्गुणम्’ जो गुणों से सहित वह सगुण और जो गुणों से रहित वह निर्गुण कहाता है। अपने-अपने स्वाभाविक गुणों से सहित और दूसरे विरोधी के गुणों से रहित होने से सब पदार्थ, सगुण और निर्गुण हैं। कोई भी ऐसा पदार्थ नहीं है कि जिस में केवल निर्गुणता वा केवल सगुणता हो किन्तु एक ही में सगुणता और निर्गुणता सदा रहती है। वैसे ही परमेश्वर अपने अनन्त ज्ञान बलादि गुणों से सहित होने से सगुण रूपादि जड़ के तथा द्वेषादि जीव के गुणों से पृथक् होने से निर्गुण कहाता है।
(प्रश्न) संसार में निराकार को निर्गुण और साकार को सगुण कहते हैं। अर्थात् जब परमेश्वर जन्म नहीं लेता तब निर्गुण और जब अवतार लेता है तब सगुण कहाता है?
(उत्तर) यह कल्पना केवल अज्ञानी और अविद्वानों की है। जिन को विद्या नहीं होती वे पशु के समान यथा तथा बर्ड़ाया करते हैं। जैसे सन्निपात ज्वरयुक्त मनुष्य अण्डबण्ड बकता है वैसे ही अविद्वानों के कहे वा लेख को व्यर्थ समझना चाहिये।
(प्रश्न) परमेश्वर रागी है वा विरक्त?
(उत्तर) दोनों में नहीं। क्योंकि राग अपने से भिन्न उत्तम पदार्थों में होता है, सो परमेश्वर से कोई पदार्थ पृथक् वा उत्तम नहीं है। इसलिए उस में राग का सम्भव नहीं। और जो प्राप्त को छोड़ देवे उस को विरक्त कहते हैं। ईश्वर व्यापक होने से किसी पदार्थ को छोड़ ही नहीं सकता, इसलिये विरक्त भी नहीं।
(प्रश्न) ईश्वर में इच्छा है वा नहीं।
(उत्तर) वैसी इच्छा नहीं। क्योंकि इच्छा भी अप्राप्त, उत्तम और जिस की प्राप्ति से सुख विशेष होवे तो ईश्वर में इच्छा हो सके । न उससे कोई अप्राप्त पदार्थ, न कोई उससे उत्तम और पूर्ण सुखयुक्त होने से सुख की अभिलाषा भी नहीं है। इसलिये ईश्वर में इच्छा का तो सम्भव नहीं, किन्तु ईक्षण अर्थात् सब प्रकार की विद्या का दर्शन और सब सृष्टि का करना कहाता है; वह ईक्षण है। इत्यादि संक्षिप्त विषयों से ही सज्जन लोग विस्तरण कर लेंगे। अब संक्षेप से ईश्वर का विषय लिखकर वेद का विषय लिखते हैं-
यस्मादृचो अपातक्षन् यजुर्यस्मादपाकषन् ।
सामानि यस्य लोमान्यथर्वांगिरसो मुखं स्कम्भन्तं ब्रूहि कतमः स्विदेव सः ।। -अथर्वन कां० १०। प्रपा० २३। अनु० ४। मं० २०।।
जिस परमात्मा से ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद प्रकाशित हुए हैं वह कौन सा देव है?
इसका (उत्तर)-जो सब को उत्पन्न करके धारण कर रहा है वह परमात्मा है।
स्वयम्भूर्याथातथ्यतोऽर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः ।। -यजु० अ० ४०। मं० ८।।
जो स्वयम्भू, सर्वव्यापक, शुद्ध, सनातन, निराकार परमेश्वर है वह सनातन जीवरूप प्रजा के कल्याणार्थ यथावत् रीतिपूर्वक वेद द्वारा सब विद्याओं का उपदेश करता है।
क्षेत्रीय कार्यालय (भोपाल)
आर्य समाज संस्कार केन्द्र
अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट भोपाल शाखा
गायत्री मन्दिर, CTO, Camp No. 12
रेलवे स्टेशन के पास, बैरागढ़
भोपाल (मध्य प्रदेश) 462030
हेल्पलाइन : 8989738486
www.bhopalaryasamaj.com
राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
नरेन्द्र तिवारी मार्ग, बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास, दशहरा मैदान के सामने
अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
दूरभाष : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
www.allindiaaryasamaj.com
---------------------------------------
Regional Office (Bhopal)
Arya Samaj Sanskar Kendra
Akhil Bharat Arya Samaj Trust Bhopal Branch
Gayatri Mandir, CTO Camp No.-12
Near Railway Station, Bairagarh
Bhopal (Madhya Pradesh) 462030
Helpline No.: 8989738486
www.bhopalaryasamaj.com
National Administrative Office
Akhil Bharat Arya Samaj Trust
Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
Narendra Tiwari Marg, Near Bank of India
Opp. Dussehra Maidan, Annapurna
Indore (M.P.) 452009
Tel. : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
www.allindiaaryasamaj.com
Why are you afraid of getting into this confusion? Knowledge of adjective learning, what is the result of that. If you say that 'Vyavartakam adjective bhavatiiti'. If the adjective is discriminatory, believe it even more that 'Pravartakam Prakashanampi adjective bhavatiiti'. If the adjective is also promoter and publisher, then understand that the Advaita adjective is of Brahm. In this, the Vyavartak Dharma is that the Advaita separates Brahma from the object, which is the many living entities and elements, and the adjective religion of the adjective is that Brahma tends to become one.
Chaptar Seven-6 Satyarth Prakash (Light of Truth) | Arya Samaj Intercast Marriage in Bhopal Madhya Pradesh (8989738486) | Arya Samaj Mandir Bhopal | Arya Samaj Marriage Guidelines Bhopal Madhya Pradesh | inter caste marriage consultants in Bhopal | court marriage consultants in Bhopal | Arya Samaj Mandir marriage consultants in Bhopal Madhya Pradesh | arya samaj marriage certificate Bhopal | Procedure Of Arya Samaj Marriage Bhopal Madhya Pradesh | arya samaj marriage registration Bhopal | arya samaj marriage documents Bhopal | Procedure Of Arya Samaj Wedding Bhopal | arya samaj intercaste marriage Bhopal | arya samaj wedding Bhopal | arya samaj wedding rituals Bhopal Madhya Pradesh | arya samaj wedding legal Bhopal Madhya Pradesh | arya samaj shaadi Bhopal | arya samaj mandir shaadi Bhopal | arya samaj shadi procedure Bhopal | arya samaj mandir shadi valid Bhopal | arya samaj mandir shadi Bhopal Madhya Pradesh | inter caste marriage Bhopal | validity of arya samaj marriage certificate Bhopal | validity of arya samaj marriage Bhopal.
Arya Samaj Mandir Marriage Helpline Bhopal | Aryasamaj Mandir Helpline Bhopal | inter caste marriage Helpline Bhopal | inter caste marriage promotion for prevent of untouchability in Bhopal | Arya Samaj Bhopal | Arya Samaj Mandir Bhopal | arya samaj marriage Bhopal | arya samaj marriage rules Bhopal | inter caste marriage promotion for national unity by Arya Samaj Bhopal | human rights in Bhopal | human rights to marriage in Bhopal | Arya Samaj Marriage Ceremony Bhopal | Arya Samaj Wedding Ceremony Bhopal | Documents required for Arya Samaj marriage Bhopal | Arya Samaj Legal marriage service Bhopal.
Arya Samaj Pandits Helpline Bhopal | Arya Samaj Pandits Bhopal | Arya Samaj Pandits for marriage Bhopal | Arya Samaj Temple Bhopal | Arya Samaj Pandits for Havan Bhopal | Arya Samaj Pandits for Pooja Bhopal | Pandits for marriage Bhopal | Pandits for Pooja Bhopal | Arya Samaj Pandits for vastu shanti havan | Vastu Correction Without Demolition Bhopal | Arya Samaj Pandits for Gayatri Havan Bhopal | Vedic Pandits Helpline Bhopal | Hindu Pandits Helpline Bhopal | Pandit Ji Bhopal | Arya Samaj Intercast Matrimony Bhopal | Arya Samaj Hindu Temple Bhopal | Hindu Matrimony Bhopal | वेद | महर्षि दयानन्द सरस्वती | विवाह समारोह भोपाल | हवन भोपाल | आर्यसमाज पंडित भोपाल | आर्य समाजी पंडित भोपाल | अस्पृश्यता निवारणार्थ अन्तरजातीय विवाह भोपाल | आर्यसमाज मन्दिर भोपाल | आर्य समाज मन्दिर विवाह भोपाल | वास्तु शान्ति हवन भोपाल | आर्य समाज मन्दिर आर्य समाज विवाह भोपाल मध्य प्रदेश भारत | Arya Samaj Mandir Marriage Bhopal Madhya Pradesh India | सत्यार्थप्रकाशः